हृदय की संरचना
हृदय हमारे शरीर का सबसे आवश्यक बन्द के आकार का माँसल अंग है जिसका मुख्य कार्य शरीर को निरन्तर रक्त प्रेषित करना है | यह सामान्य: 72 शब्द प्रति मिनट आजीवन अविरत झड़कात है और हमें मोक्ष की राह दिखा कर ही सेवानिवृत्ति लेता है | इसका भार औसतन महिलाओं में 250 से 300 ग्राम और पुरूषों में 300 से 350 ग्राम होता है | यह वह गुहा (छाती) में मध्य से थोड़ा बांई तरफ दोंनो फुफ्फुसों के बीच स्थित होता है और एक आघातरोधी विशिष्ट द्रव से भरे दोहरी तह वाले खोज, जिसे पेरिकार्डियम कहते है, में सुरक्षित और स्थिर होता है | हृदय की भित्ती में तीन तहें क्रमश: 1. इपीकार्डियम जो सबसे बाहर की तह है, 2.मायोकार्डियम जो एक अनैच्छिक पेशी उतक है और 3. एन्डोकार्डियम जो सबसे अन्दर की तह है |
हृदय की संरचना चतुर्कक्षी, चतुर्दारी और चतुर्मुखी है अर्थात् इसमें चार कक्ष होते हैं, चार कपाट होते हैं जो एक ही तरफ खुलते हैं और यह चार रक्त सरिताओं द्वारा ही शरीर के रक्त वाहिका तंत्र से जुड़ा रहता है | उपर के कक्षों का क्रमश: बाँया और दाँया आलिन्द तथा नीचे के कक्षों को चार कमरो वाला डयुप्लेक्स फ्लैट है | दोंनो आलिन्द तथा नीचे पतली भित्तियों वाले कक्ष हैं जो बल पूर्वक रक्त को हृदय से बाहर पंप करते हैं | दोंनो आलिन्दों और निलयों के बीच एक भित्ति होती है, जो हृदय के दाँये और बाँये हिस्सों को अलग करती है |
प्रकृति ने हृदय को एक ही तरफ खुलने वाले चार कपाट या वाल्व भी दिये हैं, ताकि रक्त एक ही दिशा में प्रवाहित हो | दाँये आलिन्द और दाँये निलय के बीच के वाल्व को ट्राइकस्पिड वाल्व कहते हैं | इसी तरह बाँये आलिन्द और बाँये निलय के बीच के वाल्व को माइट्रल वाल्व कहते हैं | दाँये निलय और मुख्य पलमोनरी धमनी के बीच के अर्धचन्द्राकार वाल्व को पलमोनरी वाल्व और बाँये निलय और महाधमनी के बीच के अर्धचन्द्राकार वाल्व को एओट्रिक वाल्व कहते हैं | जब निलय का संकुचन होता है तो आलिन्द और निलय के बीच के वाल्व बन्द हो जाते हैं जो रक्त को आलिन्दमें जाने सेरोकते हैं | जब निलय का विस्तारण होता है, ये अर्धचन्द्राकार वाल्व बन्द होकर रक्त को धमनियों से निलय में आने से रोकते हैं |
हृदय में रक्त परिवहन की कार्यप्रणाली
यह महत्वपूर्ण है कि दोनों आलिन्द और निलय आकुंचन और निस्तारण एक साथ करते हैं | हृदय में दाँये और बाँये दोनों निलय रक्त को एक साथ बाहर पम्प करते हैं | शरीर के विबिन्न अंगों से अशुध्द रक्त महाशिरा व्दारा दाँये आलिन्द में कार्बन – डाई ऑक्साइड से अशुध्द रक्त सिलेन्डरों से लदे लाल कणों के लेकर पहुँचता है | शरीर के विभिन्न कोशिकाएँ और उतक प्राणवायु ( आक्सीजन ) ग्रहण कर सिलेन्डरों में कार्बन – डाई ऑक्साइड भर देते हैं | आप ऐसे समझिये कि प्रोटीन और लोहे से बने ये सिलेन्डर हिमोग्लोबिन का काल्पनिक रूप हैं और लाल रक्त कण इन सिलेन्डरों का वाहन हैं ( जैसे इन्डेन गैस के लाल सिलेन्डरों से लदी लारी | ट्राइकस्पिड वाल्व खुलने पर रक्त दाँये निलय में भर दाता है और जब निलय का आकुंचन हेता है तो ट्राइकस्पिड वाल्व बंद हो जाता है तथा पतमोनरी वाल्व खुल जाता है | फलस्वरूप रक्त पलमोनरी धमनियों द्वारा शुद्धिकरण हेतु फुफ्फुसों में चला जाता हैं |