पर्यावरण

मानव प्रकृति की अनमोल कृति है | मानव अपनी अनन्त भौतिक संसाधनों की पूर्ति के लिए लम्बे अरसे से प्रकृति का अंधाधुंध दोहन कर रहा है | इससे पूरे विश्व में पर्यावरण प्रदूषण की गंभीर समस्या उत्पन्न हो गयी है | आज पूर्वी, पश्चिम, उत्तरी, तथा दक्षिणी गोलाध्दों में उद्योगों का जाल फैला है |

हमारे यहाँ नदियाँ, वृक्षों, पहाड़ों पशु- पक्षियों तथा सम्पूर्ण प्रकृति की पूजा का विधान रहा है | पूरा विश्व आज पर्यावरण की गम्भीर समस्या का सामना कर रहा है | अब जीव – जन्तुओं तथा मानव मात्र के अस्तित्व की भी समस्या पैदा हो गई है | आज आकाश, पृथ्वी, जल, वायु सभी प्रदूषित हो गये हैं | भौथ्तकवाद के मोह में फंसा मनुष्य अधिक उपज लेने के लालच में खेतों में जहरीली कीटनाशक दवाओं तथा रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग धरती माँ को बंजर बना रहा है | उद्योगों की अंधी दौड़ में कल – कारखानों से निकलने वाला विषैला धुआं, वायु और जल को निरन्तर प्रदूषित कर रहा है | पश्चिम के कई देशों में तेजाबी बारिश इसी का कारण है | वैश्विक तापन आज पूरे विश्व में पर्यवरण चुनौती के रूप में खड़ा है |

धतूरा एवं मदार घरती के नीलकंठ हैं | प्रकृति की एकमहत्वपूर्ण देन है धतूरा जिसे हम विषधर भी मानते है | धतूरे के पौधों में ‘स्कोपोलामिन’ , ‘हायोसायमिन’ और ‘एट्रोपीन’ जैसे एल्केकॉयड पाए जाते हैं | प्राचीन काल से ही धतूरा विष और हम खतरनाक औषधियों को बनाने में प्रयोग होता रहा है और हम इसके गुणों को समझ नहीं पाए | भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सा पध्दति ने सीमित और उचित तरीके से धतूरे का उपयोग करके इस विषधर को मानव जीवन के लिए वरदान साबित किया है |

मदार भी एक वांछनीय वनस्पति के रीप में पहचाना गया है | मदार एपोसायनेसी कुल का पौधा है जिसकी दो प्रमुख प्रजातियाँ कैलोट्रॉपिस प्रोसेरो और के खिलते पुष्प पायी जाती हाम | मूक, सब कुछ सहने और कुछ न कहने वाले ये निरस्कृत पौधे, जिनका आज भी मानव तिरस्कार करता है, ये उन्हीं मानवों की रक्षा करने में एक सजग प्रहरी की भाँति खडे़ हैं |

विज्ञान पर स्वयं अच्छी परम्पराओं के कुशल वाहक बनने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है | उसे प्रायोगिक परीक्षणों और वृहत शोधों के आधार पर ही सिध्द किया दा सकता है| धरती पर अपने पर्यावरण की कठिन पारिस्थितिकी एवं परिस्थिति में जीवन जीते , सारी कठिनाइयों को सहते ये पौधे स्वयं में विष समाहित कर लेते हैं और फिर भी हरे-भरे लहलहाते नजर आते हैं |

उत्तरी अमेरिका के कुछ रेड इंडियन के घर में पुत्र पैदा होने पर एक वृक्ष लगाते हैं जिसकी देखभाल पुत्रों की भाँति करते हैं | आँवले का वृक्ष श्रेष्ठ है क्योंकि भगवान विष्णु को यह प्रिय है | इसके स्मरण मात्र से मनुष्य गोदान का फल पाता है | दर्शन से दुगना फल मिलता है | जो व्यक्ति चार वृक्षों का रोपण करता है वह राजसूय यज्ञ करने का फल पाता है | इसमें कोई संशय नहीं है | जैसा कि रामायण में भी कहा गया है-

संस्कृत में वन धातु के विभिन्न अर्थों (द्रवित होना, पानी, जीवन- विस्तार) में एक अर्थजल भी होता है | प्राचीनकाल में ऋषियों ने अनुभव किया कि पेड़- पौधों का जल से सीधा सम्बन्ध है | जहाँ पेड़ – पौधों होते थे, वहाँ का जल से सीधा सम्बन्ध है | जहाँ पेड़ – पौधे होते थे, वहाँ जल की प्रचुरता हे जाती था | हाँ, जहाँ इसकी कमी हेती थी वहाँ सूखा, रेगिस्तान बढ़ता था | सम्भवत: इसीलिए पेड़ – पौधों के लिए ऋषियों ने वनस्पति शब्द का प्रयोग किया |

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